Arya-And-Castes In Hindu Sanatan Dharma.
Posted on September 30, 2011 by Sam Hindu's Blog.
If in behavior, speech, actions, one adheres to principles of vedas – is
civilized, affectionate to fellow people, not tempted to commit sins,
hygienic, promotes and propagates truth, etc – he or she is an Arya. Again
it is not a binary logic, but a continuous function.
2. English is a poor approximate of vedic language. But Brahmin, Kshatriya,
Vaishya, Shudra are names of varnas or classifications based on profession.
They have nothing to do with birth. Shudra is someone who could not get
adequetly educated and hence incompetent to be in any of these professions.
People in knowledge based matters are Brahmins, those in state/defence level
matters are Kshatriyas, those in financial/ economic jobs are Vaishyas and
rest are Shudras.
3. These Varnas are nothing to do with presently used custom of surnames. In
fact if you read Ramayan or Mahabharat or other texts of those times, you do
not find this tradition of First Name-Middle Name-Surname as nomenclature of
people.
I would refute the basis of argument that Arya word denotes parentage
in any manner.
1. Of course, family and parentage do have their role in determining
sanskaars of a person. But that does not mean that someone from unidentified
parentage cannot be Arya. This imaginary casteism is one of the biggest
reasons for our decadence. We foolishly expurged a large majority of our
fellow brothers and sisters as Shudras and Achhoots on basis of their
unknown or questionable lineage or family.
2. The Arya has nothing to do with one’s gotra. Hardly any surname today
represents any Gotra. The gotra classification was to do with preventing
marriages between closed relatives.
3. Arya denotes a noble person. Family is only one among many ways to
ascertain if someone is noble. And to say that Shudra cannot become Brahmin
is again blatantly wrong. Brahmin is someone with knowledge. And Shudra
means someone who could not become Brahmin, Kshatriya or Vaishya due to lack
of edcation or training. So even a Shudra, after having gained knowledge
through efforts can become Brahmin.
4. Dwija means twice born. From birth everyone is Shudra. But after
education, Brahmins, Kshatriya and Vaishya take another birth as skilled
humans. In other words, education gives them another birth as civilized
people worthy of contributing to society. Thus they become Dwija – twice
born. Those who are unable to gain education lose this opportunity of new
birth and hence remain Shudra.
Thus an illiterate son of Brahmin is also shudra. And any shudra, after
having gained knowledge through his or her efforts can become a brahmin,
vaishya or kshatriya. This has nothing to do with biological birth.
Until we are able to throw away this tail of birth based caste, we can never
be a united front for vedic empire.
Lets embrace truth and reject the trash.
Arya-And-Castes In Hindu Sanatan Dharma.
is also available in English on http://agniveer.com/9/arya-and-castes/
प्रत्येक श्रेष्ठ और सुसभ्य मनुष्य आर्य है |
अपने आचरण, वाणी और कर्म में वैदिक सिद्धांतों का पालन करने वाले, शिष्ट, स्नेही, कभी पाप कार्य न करनेवाले, सत्य की उन्नति और प्रचार करनेवाले, आतंरिक और बाह्य शुचिता इत्यादि गुणों को सदैव धारण करनेवाले आर्य कहलाते हैं |
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह चार वर्ण वास्तव में व्यक्ति को नहीं बल्कि गुणों को प्रदर्शित करते हैं. प्रत्येक मनुष्य में ये चारों गुण (बुद्धि, बल, प्रबंधन, और श्रम) सदा रहते हैं. आसानी के लिए जैसे आज पढ़ाने वाले को अध्यापक, रक्षा करने वाले को सैनिक, व्यवसाय करने वाले को व्यवसायी आदि कहते हैं वैसे ही पहले उन्हें क्रमशः ब्रह्मण, क्षत्रिय या वैश्य कहा गया और इनसे अलग अन्य काम करने वालों को शूद्र. अतः यह वर्ण व्यवस्था जन्म- आधारित नहीं है|
आजकल प्रचलित कुलनाम ( surname) लगाने के रिवाज से इन वर्णों का कोई लेना-देना नहीं है | हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ रामायण, महाभारत या अन्य ग्रंथों में भी इस तरह से प्रथम नाम- मध्य नाम- कुलनाम लगाने का कोई चलन नहीं पाया जाता है और न ही आर्य शब्द किसी प्रकार की वंशावली को दर्शाता है|
निस्संदेह, परिवार तथा उसकी पृष्टभूमि का किसी व्यक्ति को संस्कारवान बनाने में महत्वपूर्ण स्थान है परंतु इससे कोई अज्ञात कुल का मनुष्य आर्य नहीं हो सकता यह तात्पर्य नहीं है | हमारे पतन का एक प्रमुख कारण है मिथ्या जन्मना जाति व्यवस्था जिसे हम आज मूर्खता पूर्वक अपनाये बैठे हैं और जिसके चलते हमने अपने समाज के एक बड़े हिस्से को अपने से अलग कर रखा है – उन्हें शूद्र या अछूत का दर्जा देकर – महज इसलिए कि हमें उनका मूल पता नहीं है | यह अत्यंत खेदजनक है |
आर्य शब्द किसी गोत्र से भी सरोकार नहीं रखता | गोत्र का वर्गीकरण नजदीकी संबंधों में विवाह से बचने के लिए किया गया था | प्रचलित कुलनामों का शायद ही किसी गोत्र से सम्बन्ध भी हो |
आर्य शब्द श्रेष्टता का द्योतक है | और किसी की श्रेष्ठता को जांचने में पारिवारिक पृष्ठभूमि कोई मापदंड हो ही नहीं सकता क्योंकि किसी चिकित्सक का बेटा केवल इसी लिए चिकित्सक नहीं कहलाया जा सकता क्योंकि उसका पिता चिकित्सक है, वहीँ दूसरी ओर कोई अनाथ बच्चा भी यदि पढ़ जाए तो चिकित्सक हो सकता है. ठीक इसी तरह किसी का यह कहना कि शूद्र ब्राह्मण नहीं बन सकता – सर्वथा गलत है |
ब्राह्मण का अर्थ है ज्ञान संपन्न व्यक्ति और जो शिक्षा या प्रशिक्षण के अभाव में ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बनाने की योग्यता न रखता हो – वह शूद्र है | परंतु शूद्र भी अपने प्रयत्न से ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करके वर्ण बदल सकता है | ब्राह्मण वर्ण को भी प्राप्त कर सकता है |
द्विज – अर्थात् जिसने दो बार जन्म लिया हो | जन्म से तो सभी शूद्र समझे गए हैं | ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीन वर्णों को द्विज कहते हैं क्योंकि विद्या प्राप्ति के उपरांत योग्यता हासिल करके वे समाज के कल्याण में सहयोग प्रदान करते हैं | इस तरह से इनका दूसरा जन्म ‘ विद्या जन्म’ होता है | केवल माता-पिता से जन्म प्राप्त करनेवाले और विद्याप्राप्ति में असफ़ल व्यक्ति इस दूसरे जन्म ‘ विद्या जन्म ‘ से वंचित रह जाते हैं – वे शूद्र हैं |
अतः यदि ब्राह्मण पुत्र भी अशिक्षित है तो वह शूद्र है और शूद्र भी अपने निश्चय से ज्ञान, विद्या और संस्कार प्राप्त करके ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बन सकता है | इस में माता- पिता द्वारा प्राप्त जन्म का कोई संबंध नहीं है |
आइए, हम सब सत्य ग्राही बनें, मिथ्या जातिवाद की जकड़ से मुक्त होकर एकात्म और सशक्त समाज तथा राष्ट्र का निर्माण करें | विशेष विश्लेषण के लिए पढ़ें: http://agniveer.com/4034/caste-vedas-hi/
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